गुरुवार, 3 अगस्त 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (23)


-अरुण माहेश्वरी

युवा हेगेलपंथियों में कार्ल मार्क्स

बर्लिन विश्वविद्यालय में बने डाक्टर्स क्लब के युवा या वामपंथी  हेगेलपंथियों में जो क्रांतिकारी लेखक, दार्शनिक, पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता मुख्य रूप से सक्रिय थे उनमें नौजवान कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिख एंगेल्स के अलावा लुडविग फायरबाख, अराजकतावादी मिखाइल बुखानिन, भाषाविद ब्रुनो बावर, खुले विचारों के व्यक्तिवादी मैक्स स्टर्नर, और समाजवादी मोसेस हेस शामिल थे ।

जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर आए हैं, हेगेल की मृत्यु के बाद उनके शिष्यों में जहां एक दक्षिणपंथी समूह था जो हेगेल को लगभग देवता मान रहा था । उनके अनुसार हेगेलपंथ एक प्रकार से ईसाईयत का ही दूसरा नाम था । हेगेलपंथ के पास अपने कोई नये सच नहीं थे, वह सिर्फ मननशील विवेक के जरिये ईसाईयत की अस्मिता की ही संपुष्टि कर रहा था । कार्ल गैस्चेल ने 1829 में अपनी पुस्तक में यहां तक दावा कर दिया था कि हेगेल का दर्शन “ईश्वर के कहे से पूर्ण सहमति रखते हुए“ लुथर की ईसाईयत का पुनर्कथन था । (देखें – Steplevich Lawrence, ‘Introduction’, The Young Hegelians : An Anthology, Cambridge University Press, Cambridge, UK, 1983, page – 3-4)


इसके साथ ही संरक्षणवादियों का एक दूसरा धड़ा, जिनमें हम शेलिंग की विशेष चर्चा कर चुके हैं, था जो बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति का लाभ उठा कर हेगेल के खिलाफ पिल पड़ा था । इसकी मुख्य वजह यह बताई जाती है कि यंग हेगेलपंथियों की विवादों को खड़ा करने की प्रवृत्ति के कारण राज्य हेगेलपंथ से ही आतंकित सा हो गया था । 1840 में प्रशिया के राजा फ्रेडरिख विल्हेल्म III की मृत्यु हो गयी जिसकी सरकार ने हेगेल को समर्थन दिया था । उनकी जगह आए विल्हेल्म IV कहीं ज्यादा संरक्षणवादी थे । उसका संस्कृति मंत्री जे. जी. ईकोर्न बेहद प्रतिक्रियावादी था जिसके कारण हेगेल को दिया गया सरकारी संरक्षण खत्म हो गया और बूढ़े खूसट एफ डब्लू जे शेलिंग ने बर्लिन आकर हेगेलपंथ को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया । इसका हम पहले जिक्र कर चुके हैं ।

एफ डब्लू जे शेलिंग

इन सबके विपरीत युवा हेगेलपंथियों का दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था । उन्होंने दक्षिणपंथियों के विपरीत दर्शनशास्त्र को धर्म के अधीन रखने के विचार का ही विरोध किया । उल्टे वे दर्शनशास्त्र का प्रयोग धर्म की आलोचना के लिये कर रहे थे । एंगेल्स के शब्दों में दक्षिणपंथी अर्थात पुराने हेगेलपंथी “मकड़ी का जाला बुनने वाले पिस्सू थे जिन्होंने दर्शनशास्त्र की पीठों पर कब्जा कर लिया था ।"


हेगेल पर शेलिंग के हमलो का एंगेल्स ने 1841 की अपनी एक टिप्पणी में बहुत ही जीवंत चित्र खींचा है । अपनी इस टिप्पणी का प्रारंभ वे इस प्रकार करते हैं कि “आज बर्लिन में किसी से भी पूछिये कि राजनीति और धर्म में जर्मन जनमत पर, और इस प्रकार खुद जर्मनी पर प्रभुत्व कायम करने की लड़ाई कहां चल रही है, और उसके दिमाग में दुनिया पर मस्तिष्क की शक्ति की कोई भी अवधारणा होगी तो वह कहेगा युद्ध का यह मैदान विश्वविद्यालय, खास तौर पर लेक्चर हॉल नंबर 6 है जहां शेलिंग प्रकटीकरण के दर्शन पर लेक्चर दिया करते हैं ।...युवा काल के दो पुराने मित्र चालीस साल बाद एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं, जिनमें से एक दस साल पहले मर चुका है लेकिन अपने शिष्यों से कहीं ज्यादा जीवित है ; दूसरा, जैसा कि कहा जाता है, तीस साल पहले ही बौद्धिक तौर पर मर गया था, अब अचानक अपने में जिंदगी की पूरी शक्ति और अधिकार का दावा कर रहा है ।...यदि हेगेल की प्रणाली को दिये गये शेलिंग के मृत्युदंड को उसकी नौकरशाही की भाषा से मुक्त करके देखा जाए तो जो निकलेगा वह यह कि हेगेल की वास्तव में अपनी कोई प्रणाली ही नहीं थी, वह तो मैंने जहां अपने विचारों को छोड़ दिया उसकी कमी को पूरा करने के लिये पैदा हो गयी ।...शेलिंग हेगेल में जिस गुण को भी स्वीकारता है, उस सबको अपनी संपत्ति बता रहा है, अर्थात अपनी खुद की मज्जा की मज्जा ।“ (MECW, Vol. 2, page – 181-186)


दरअसल, 1835 में डेविड स्ट्रास की पुस्तक से वास्तव में एक तहलका मच गया, जिसमें उन्होंने बाइबल की कहानियों को कोई ऐतिहासिक महत्व देने के बजाय उन्हें शुद्ध रूप से मिथकीय कथाएं बताया । जैसा कि हम पहले ही इसे उस पूरे काल को परिभाषित करने वाली घटना बता चुके हैं, इसी बिंदु से यंग हेगेलियन आंदोलन का प्रारंभ होता है और हेगेल के दर्शनशास्त्र की आलोचनात्मक दृष्टि से जांच-परख शुरू हो जाती है । सन् 1841 में फायरबाख की किताब 'ईसाई धर्म का सार' (Essence of Christianity ) प्रकाशित होती है, जिसे यंग हेगेलियन्स का तब सबसे महत्वपूर्ण दर्शनशास्त्रीय ग्रंथ माना गया था ।



एंगेल्स ने इसके बारे में लिखा कि “बिना कपटपूर्ण बातों के एक झटके में उसने सारे अंतर्विरोधों को चकनाचूर कर दिया और भौतिकवाद को उसके सिंहासन पर फिर से आसीन किया । प्रकृति का अस्तित्व सभी दर्शनशास्त्रों से स्वतंत्र है । यह वह आधारशिला है जिस पर हम मानव प्राणी, हम प्रकृति की उपज विकसित हुए हैं । प्रकृति और मनुष्य से बाहर किसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है ।“



यंग हेगेलपंथियों की इन तमाम गतिविधियों के संदर्भ में जब हम हेगेल के 'अधिकार के दर्शन के संदर्भ में मार्क्स के इस कथन को देखते है कि “धर्म की आलोचना सभी आलोचना की पूर्व-शर्त है“ तो इस कथन के तमाम पहलू साफ होने लगते हैं । यंग हेगेलपंथियों में मार्क्स की क्या धाक थी, इसे मोसेस हेस की इस बात से समझा जा सकता है जिसे उन्होंने अपने एक मित्र को लिखे पत्र में कहा था । वे मार्क्स का परिचय देते हुए कहते हैं -
“वह सबसे महानतम है, शायद आज जीवित एक सच्चा दार्शनिक और शीघ्र ही पूरे जर्मनी का ध्यान अपनी ओर खींचेगा [...] डा. मार्क्स – मेरे आदर्श का नाम – अभी काफी नौजवान है (लगभग चौबीस साल का) और वह मध्यकालीन धर्म और राजनीति को उनकी जगह दिखा देगा । उसमें तीक्ष्ण मारक बुद्धि के साथ सबसे गहरी दर्शनशास्त्रीय गंभीरता का योग है । कल्पना करो कि रूसो, वाल्तेयर, हौलबाख, लेसिंग, हाइने और हेगेल एक व्यक्ति में घुल-मिल गये हो – मैं कह रहा हूं घुल-मिल, न कि किसी ढेर की तरह इकट्ठे होना – वह व्यक्ति है डा. मार्क्स ।“( बर्लिन, कार्ल मार्क्स, पेज – 73)

मोसेस हेस

हेस ने ही मार्क्स को युवा हेगेलपंथ की समर्थक पत्रिका 'राइनिश जाइतुंग' के संपादक के रूप में  नियुक्त किया जिसे एक साल के अंदर ही सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इस प्रकार राज्य की सेंशरशिप के खिलाफ वामपंथियों की लड़ाई की अग्रिम पंक्ति में मार्क्स आ गये ।
(क्रमशः)

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